Wednesday 27 May 2015

दस सालों के कुशासन पर कोर्इ रंज नहीं, एक साल के सुशासन पर सवालों की बौछार क्यों ?


यूपीए एक का पूरा कार्यकाल सत्ता पाने की खुमारी में ही निकल गया। मनरेगा ने 2009 में फिर सत्ता दिला दीं। उपलब्धियों के बजाय नाकामयाबियां ज्यादा होने पर भी सत्ता मिल गर्इ । मजा आ गया। यह खुशफहमी हो गर्इ कि सत्ता हमसे कोर्इ छीन नहीं सकता, क्योंकि भारत पर शासन करने का हमारा खानदानी हक है। निश्चिंत हो कर यूपीए दो के कार्यकाल में जी भर के घपले-घोटाले किये।

देश के प्राकृतिक संसाधनों की बेबाक व बेशर्म लूट से देश की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गर्इ। राजकोषीय घाटा बढ़ता गया। औद्योगिक उत्पादन घटता गया। बैरोजगारी और महंगार्इ बढ़ती गर्इ। अभावों ने देश के करोड़ो लोगों का सुख चैन लिया, किन्तु इन सब बातों से बेखबखर अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री आंखें बंद कर बैठे रहें। सीएजी ने जब पूरे देश का ध्यान कर्इ लाख करोड़ रुपये कि हेरा फेरी की ओर दिलाया तब प्रधानमंत्री ने नपे तुले शब्दों में जवाब दिये- मैं कुछ नहीं जानता। मैने कुछ नहीं किया। और सरकार के प्रवक्ता संसद और बाहर कहते रहे- सीएजी झूठ बोलती है। एक पैसा का घोटाला नहीं हुआ।

कांग्रेसी नेताओं को इस बात पर किंचित भी अफसोस नहीं है कि उन्होंने देश की करोड़ो जनता का भरोसा क्यों तोड़ा ? इस बात पर भी आत्ममंथन नहीं करते कि जनता ने क्यों उनकी पार्टी को सत्ता से उठा कर जमीन पर पटक दिया। पार्टी की आज ऐसी हालत हो गयी है कि वह उठ कर चल भी नहीं पा रही है। केन्द्र की सत्ता गर्इ। अधिकांश राज्यों से सूपड़ा साफ हो गया। फिर भी पता नहीं क्यों कांग्रेसी नेताओं को इस बात का आत्माभिमान है कि उन्होंने चाहे जितने पाप किये हों, किन्तु भारत की जनता के पास पुन: उन्हें सत्ता सौंपने के अलावा कोर्इ विकल्प ही नहीं है ? कांग्रेसी नेता पार्टी की ऐसी दुर्गति होने के बावजूद भी इस सोच से अपने आपको मुक्त नहीं कर पाये हैं कि भारत पर शासन करने का हक एक परिवार का ही है। चाहे वह परिवार कैसा भी हों, हम उसे उनका हक दिला कर ही रहेंगे। क्या कांग्रेसियों की लोकतंत्र में आस्था ही नहीं है ? जब कि भारत की जनता ने सुशासन और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन के लिए उस परिवार को ठुकरा दिया है, फिर क्यों वे एक परिवार की परिक्रमा करने से ही अपने आपको धन्य समझ रहे हैं।

जो गले तक भ्रष्टाचार के कीचड़ में धंसे हुए हों, उन्हें साफ सुथरी जमीन पर चल रहे र्इमानदार लोगों से प्रश्न पूछने का अधिकार नहीं होता है। देश को जिन्होंने दस साल तक कुशासन दिया, उसकी कोर्इ सफार्इ नहीं दे पा रहे हैं, पर एक साल के सुशासन पर सवाल उठा रहे हैं ? सच सामने आ रहा है, फिर भी किंचित मात्र भी शर्म नहीं। जनता के मन में एक पार्टी के प्रति वितृष्णा भर गर्इ है, फिर भी अहंकार जस का तस है।

यदि आंख पर से गरुर का पर्दा हटा कर देखेंगे तो सब कुछ साफ-साफ दिखार्इ देगा। मोदी सरकार के एक साल के कार्यकाल का हिसाब पूछने वाले पहले यह बताएं कि उनके मंत्री दस वर्षों तक अपने-अपने कार्यालय में कितने घंटे बैठे ? यदि वे हिसाब बता पायेंगे तो उन्हें मालूम हो जायेगा कि मोदी सरकार के मंत्रियों ने एक वर्ष में जितने घंटे ऑफिस में बैठ कर काम किया है, वह उनके दस वर्ष के काम के घंटों से अधिक है। मंत्री मौज मस्ती में डूबे रहते। कार्यालय में कभी कभार आतें। उसी फार्इल को अपने घर मंगवा लेते, जिसे निपटाने के लिए हार्इ कमान का आदेश आता।

प्रधानमंत्री की विदेश यात्राओं पर सवाल उठाने वालें क्या जानते हैं कि प्रधानमंत्री ने एक साल में अपने कार्यालय में बैठ कर जितने घंटे काम किया है, वह भी एक रिकार्ड़ है। पूर्व प्रधानमंत्री से सौ गुणा ज्यादा है, क्योंकि वे कभी कभी कुछ समय के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय आते थे। आ कर करते भी क्या ? फार्इले पहले छाया प्रधानमंत्री के पास भेजी जाती, फिर उनके पास मौखिक आदेश आता, जिस पर उन्हें आंख बंद कर अपने हस्ताक्षर करने रहते। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर ढ़ेरों सवाल उछालने वालों के पास क्या इस बात का जवाब है कि उनके प्रधानमंत्री इतने बेबस क्यों थे ? आज भारत का प्रधानमंत्री पद फिर शक्तिशाली हो गया है, उस पर उन्हें जलन क्यों हो रही है ?

क्या कांग्रेसी नेताओं के पास इस बात का भी जवाब है कि पहले हर मंत्रालय में फार्इलों के ढेर क्यों लगते थे ? क्यों उन्हें निपटाया नहीं जाता था ? निर्णय लेने में देरी क्यों होती थी ? फार्इलों पर निर्णय लेने के निर्देश प्रधानमंत्री कार्यालय देता था या किसी और जगह से निर्देश आते थे ? मोदी सरकार को एक व्यक्ति की सरकार बताने वालों को पहले अपने गिरेबान में झांक कर देखना चाहिये, फिर सरकार की ओर सवाल उछालने चाहिये। कांग्रेसी नेताओं को इस बात की जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिये कि उनके मंत्री जितनी फार्इले विरासत में छोड़ कर गये थे, वे सभी क्लीयर हो गर्इ है और नर्इ आने वाली फार्इले ठहरती नहीं, दौड़ती है, क्योंकि मंत्री स्वतंत्र हो कर काम कर रहे हैं। इसे ही पारदर्शी सुशासन कहते हैं, जो आपकी सरकार देश को नहीं दे पार्इ।

प्रधानमंत्री मोदी के महंगे सूट पर कटाक्ष करते समय क्या कांग्रेसी नेताओं को वह बात याद नहीं आती जब उनका गृहमंत्री बम विस्फोट में मारे गये लोगों को देखने के लिए महंगा सूट पहन कर गया था ? वे महाशय एक दिन में तीन बार घटनास्थल पर गये थे और तीनों बार वे अपने वस्त्र बदल-बदल कर गये थे। मोदी की विदेश नीति पर सवाल उठाने वालों को क्या अपने विदेश मंत्री की वह बात भी याद नहीं, जब वे एक अन्तरराष्ट्रीय मंच पर किसी और विषय का भाषण पढ़ देश की फजिअत कर आये थे। प्रधानमंत्री के विदेश दौरों का उपहास उड़ाने वालों को इस बात की भी जानकार जुटानी चाहिये कि प्रधानमंत्री के एक-एक पल का हिसाब देश को मिल सकता है, क्योंकि उन्होंने एक वर्ष मंष एक भी छुट्टी नहीं ली और एक भी निजी यात्रा नहीं की। किन्तु यदि वे राहुल गांधी के पिछले दस सालों का रिकार्ड़ खंगालेंगे तो उनके पांवों के नीचे से जमीन खिसक जायेगी, क्योंकि उन जनाब ने अपना अधिकांश समय देश में नहीं विदेश में बिताया था और निजी यात्राएं की थी। दस वर्षों तक वे संसद से नदारद रहें। संसद में सबसे कम बोलने का रिकार्ड़ भी उनके नाम है। मां-बेटे ने वायुसेना के विमानों का उपयोग कर कर्इ निजी व गोपनीय विदेश यात्राएं की थी। क्या इन सवालों का जवाब भी कांग्रेसी नेताओं के पास है ?

दस वर्षों में देश भर में सैंकड़ों बम विस्फोट हुए, हजरो निर्दोष नागरिक मारे गये, किन्तु प्रशासन अपाहिज बना रहा। बाटला हाऊस और अक्षधाम प्रकरण को फर्जी मुठभेड़ बता कर आतंकियों के प्रति सहानुभूति दर्शायी। ताज होटल की आतंकी घटना को भगवा आतंकवाद से जोड़ने की निर्लज्जता दिखार्इ। आज आतंकी घटनाएं रुक गर्इ है। क्या इसे सरकार की प्रशासनिक सफलता नहीं माना जा सकता ?
प्रतिकूल मौसम से फसले खराब हो गर्इ, फिर भी महंगार्इ नियंत्रण में है। राजकोषीय घाटा कम हो रहा है। अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत आ रहे हैं। विदेशी निवेश बढ़ रहा है। सरकार के कामों में लाख अवरोध खड़े करने के बाद भी सरकार पूर्ण प्रतिबद्धता और र्इमानदारी से काम कर रही है, फिर भी सारे सवाल एक साल बाद ही क्यों पूछे जा रहे हैं ? जबकि सरकार को पांच वर्ष तक काम करने का जनादेश मिला है। कांग्रेसी नेता जिस तरह बावले हो रहे हैं, क्या उससे नहीं लगता कि वे सत्ता के बिना तड़फ रहे हैं ? उनकी सब्र का बांध टूट रहा है।

अगर आप सहमत है तो इस सचाई "शेयर " कर के उजागर करे।

No comments:

Post a Comment