Saturday 12 September 2015

आखिर कहा गया जयगढ़ किले का खजाना -

अक्सर सुनने को मिलता है कि आपातकाल में भारत सरकार ने जयपुर के पूर्व राजघराने पर छापे मारकर उनका खजाना जब्त किया था, राजस्थान में यह खबर आम है कि - चूँकि जयपुर की महारानी गायत्री देवी कांग्रेस व इंदिरा गांधी की विरोधी थी अत: आपातकाल में देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जयपुर राजपरिवार के सभी परिसरों पर छापे की कार्यवाही करवाई, जिनमें जयगढ़ का किला प्रमुख था, कहते कि राजा मानसिंह की अकबर के साथ संधि थी (जो की मन घंडन्त और सच्चाई से परे बाते हे, जिसका कोई भी प्रमाण मूल ऐतिहासिक बुक में नहीं हे पर अबुल फजल और कर्नल टॉड ने ऐसा ही लिखा हे., अंदेशा हे की ये सब राजपूतो को आपस में लड़वाने के लिए भ्रान्ति मात्र हे.)... राजा मानसिंह अकबर के सेनापति के रूप में जहाँ कहीं आक्रमण कर जीत हासिल करेंगे उस राज्य पर राज अकबर होगा और उस राज्य के खजाने में मिला धन राजा मानसिंह का होगा| इसी कहानी के अनुसार राजा मानसिंह ने अफगानिस्तान सहित कई राज्यों पर जीत हासिल कर वहां से ढेर सारा धन प्राप्त किया और उसे लाकर जयगढ़ के किले में रखा, कालांतर में इस अकूत खजाने को किले में गाड़ दिया गया जिसे इंदिरा गाँधी ने आपातकाल में सेना की मदद लेकर खुदाई कर गड़ा खजाना निकलवा लिया|

यही आज से कुछ वर्ष पहले डिस्कवरी चैनल पर जयपुर की पूर्व महारानी गायत्री देवी पर एक टेलीफिल्म देखी थी उसमें में गायत्री देवी द्वारा इस सरकारी छापेमारी का जिक्र था साथ ही फिल्म में तत्कालीन जयगढ़ किले के किलेदार को भी फिल्म में उस छापेमारी की चर्चा करते हुए दिखाया गया| जिससे यह तो साफ़ है कि जयगढ़ के किले के साथ राजपरिवार के आवासीय परिसरों पर छापेमारी की गयी थी|

जश्रुतियों के अनुसार उस वक्त जयपुर दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग सील कर सेना के ट्रकों में भरकर खजाने से निकाला धन दिल्ली ले जाया गया, लेकिन अधिकारिक तौर पर किसी को नहीं पता कि इस कार्यवाही में सरकार के कौन कौन से विभाग शामिल थे और किले से खुदाई कर जब्त किया गया धन कहाँ ले जाया गया|
चूँकि राजा मानसिंह के इन सैनिक अभियानों व इस धन को संग्रह करने में हमारे भी कई पूर्वजों का खून बहा था, साथ ही तत्कालीन राज्य की आम जनता का भी खून पसीना बहा था| इस धन को भारत सरकार ने जब्त कर राजपरिवार से छीन लिया इसका हमें कोई दुःख नहीं, कोई दर्द नहीं, बल्कि व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि यह जनता के खून पसीने का धन था जो सरकारी खजाने में चला गया और आगे देश की जनता के विकास में काम आयेगा| पर चूँकि अधिकारिक तौर पर यह किसी को पता नहीं कि यह धन कितना था और अब कहाँ है ?

गृह मंत्रालय से उपरोक्त खजाने से संबंधित निम्न सवाल पूछ सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत जबाब मांगे

1- क्या आपातकाल के दौरान केन्द्रीय सरकार द्वारा जयपुर रियासत के किलों, महलों पर छापामार कर सेना द्वारा खुदाई कर रियासत कालीन खजाना निकाला गया था ? यही हाँ तो यह खजाना इस समय कहाँ पर रखा गया है ?

2- क्या उपरोक्त जब्त किये गए खजाने का कोई हिसाब भी रखा गया है ? और क्या इसका मूल्यांकन किया गया था ? यदि मूल्यांकन किया गया था तो उपरोक्त खजाने में कितना क्या क्या था और है ?

3- उपरोक्त जब्त खजाने की जब्त सम्पत्ति की यह जानकारी सरकार के किस किस विभाग को है?

4- इस समय उस खजाने से जब्त की गयी सम्पत्ति पर किस संवैधानिक संस्था का या सरकारी विभाग का अधिकार है?

5- वर्तमान में जब्त की गयी उपरोक्त संपत्ति को संभालकर रखने की जिम्मेदारी किस संवैधानिक संस्था के पास है?

6- उस संवैधानिक संस्था या विभाग का का शीर्ष अधिकारी कौन है?
 
7- खजाने की खुदाई कर इसे इकठ्ठा करने के लिए किन किन संवैधानिक संस्थाओ को शामिल किया गया और ये सब कार्य किसके आदेश पर हुआ ?
 
8- इस संबंध में भारत सरकार के किन किन जिम्मेदार तत्कालीन जन सेवकों से राय ली गयी थी?
किसी अनुसंधान की जरुरत हो, लेकिन जिस तरह सरकार द्वारा सूचना मुहैया कराने के मामले में हाथ खड़े किये गये है उससे यह शक गहरा गया कि उस वक्त जयपुर राजघराने से जब्त खजाना देश के खजाने में जमा ही नहीं हुआ, यदि थोड़ा बहुत भी जमा होता तो कहीं तो कोई प्रविष्ठी मिलती या इस कार्यवाही का कोई रिकोर्ड होता| पर किसी तरह का कोई दस्तावेजी रिकॉर्ड नहीं होना दर्शाता है कि आपातकाल में उपरोक्त खजाना तत्कालीन शासकों के निजी खजानों में गया है| और सीधा शक जाहिर कर रहा कि उपरोक्त खोदा गया अकूत खजाना आपातकाल की आड़ में इंदिरा गाँधी ने खुर्द बुर्द कर स्विस बैंकों में भेज दिया जिसे सीधे सीधे जनता के धन पर डाका है..!

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जानिए कैसे ख़त्म हुए हमारे गुरुकुल कॉन्वेंट स्कूलों ने किया बर्बाद -

1858 में Indian Education Act बनाया गया -
इसकी ड्राफ्टिंग ‘लोर्ड मैकोले’ ने की थी। लेकिन उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत के शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपोर्ट दी थी। अंग्रेजों का एक अधिकारी था G.W. Litnar और दूसरा था Thomas Munro, दोनों ने अलग अलग इलाकों का अलग-अलग समय सर्वे किया था। 1823 के आसपास की बात है ये Litnar , जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया था,उसने लिखा है कि यहाँ 97% साक्षरता है और Munro, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा कि यहाँ तो 100 % साक्षरता है, और उस समय जब भारत में इतनी साक्षरता है
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मैकोले का स्पष्ट कहना था कि भारत को हमेशा-हमेशा के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी “देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था” को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह “अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था” लानी होगी और तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे
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मैकोले एक मुहावरा इस्तेमाल कर रहा है:“कि जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इसे जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी।”इसलिए उसने सबसे पहले गुरुकुलों को गैरकानूनी घोषित किया, जब गुरुकुल गैरकानूनी हो गए तो उनको मिलने वाली सहायता जो समाज के तरफ से होती थी वो गैरकानूनी हो गयी, फिर संस्कृत को गैरकानूनी घोषित किया और इस देश के गुरुकुलों को घूम घूम कर ख़त्म कर दिया उनमे आग लगा दी, उसमें पढ़ाने वाले गुरुओं को उसने मारा- पीटा, जेल में डाला।
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1850 तक इस देश में ’7 लाख 32 हजार’ गुरुकुल हुआ करते थे और उस समय इस देश में गाँव थे ’7 लाख 50 हजार’, मतलब हर गाँव में औसतन एक गुरुकुल और ये जो गुरुकुल होते थे वो सब के सब आज की भाषा में ‘Higher Learning Institute’ हुआ करते थे उन सबमे 18 विषय पढाया जाता था और ये गुरुकुल समाज के लोग मिल के चलाते थे न कि राजा,महाराजा,और इन गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी।
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इस तरह से सारे गुरुकुलों को ख़त्म किया गया और फिर अंग्रेजी शिक्षा को कानूनी घोषित किया गया और कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया, उस समय इसे ‘फ्री स्कूल’ कहा जाता था, इसी कानून के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी और ये तीनों गुलामी के ज़माने के यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं और मैकोले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर चिट्ठी है वो, उसमें वो लिखता है कि:
“इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी।”
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उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है और उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है, अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रोब पड़ेगा, अरे हम तो खुद में हीन हो गए हैं जिसे अपनी भाषा बोलने में शर्म आ रही है, दूसरों पर रोब क्या पड़ेगा।
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लोगों का तर्क है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है, दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी सिर्फ 11 देशों में बोली, पढ़ी और समझी जाती है, फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है। इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे,ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी। संयुक्त राष्ट संघ जो अमेरिका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है।
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जो समाज अपनी मातृभाषा से कट जाता है उसका कभी भला नहीं होता और यही मैकोले की रणनीति थी।
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Thursday 23 July 2015

अगर सिर्फ गुगल+ और फेसबुक पे जोक सुन सुन के मोदी जी की विदेश दौरों का पता है तो मुर्ख हो । इन उपलब्धियों के बारे में भी पता होना चाहिए -



साल एक शुरुआत अनेक -


1. मोदी जी ने सऊदी अरब को “On-Time Delivery” Premium charges on Crude Oil के लिए मना लिया है ।


2. India भूटान में 4 Hydropower stations Dams बनाएगा । जिस से Green energy मिलेगी ।

3. India नेपाल में सबसे बड़ा hydro dam बनाएगा जिस से 83% Green energy इंडिया को मिलेगी। ( इसके लिए china कब से लगा हुआ था )

4. जापान के साथ समझोता हुआ. वो भारत में 10 लाख करोड़ invest करेंगे और bullet train चलाने में मदद करेंगे।
( कांग्रेस के टाइम में ये समझोता सिर्फ 1000 करोड़ का था)

5. Vietnam के साथ रिश्ते सुधारे हैं और अब भारत को आयल देने और आयल रिफानरी में भारत के लिए मदद करेगा। 
कोंग्रेश के समय उसने मना कर दिया थ।

6. इरान अब डॉलर की जगह रूपये में आयल देने को राजी हो गया है । इस से खाफी बचत होगी ।

7. मोदी जी 28 साल के बाद औस्ट्रेलिया जाने वाले प्रधनमंत्री बने । और वहां दोस्ती के रिश्ते बनाये । अब वहां से Uranium मिलेगा जिससे बिजली बनाने के लिए काफी मदद मिलेगी।

8. मोदी जी इस साल श्री लंका गये, 27 साल में कोई भारतीय पी एम वहां गया...और टूटी हुई दोस्ती सुधारी, जिसका फायदा चीन उठा रहा था,जो कांग्रेश ने श्री लंका ना जाके बिगाड़ ली थी।

9. China के सामान India में बहुत बिक रहे हैं , इसके लिए बोल दिया की या तो इंडिया में invest करो नही तो गैर क़ानूनी माना जाएगा । अब China $20 billion Invest करेगा।

1 India ने North East and around India china border पे रोड बनाना शुरू कर दिया है ताकि हमारी army को जाने में दिक्कत न हो।
कांग्रेश इस बनाने में डरती रही।

12. India यमन से 4000+ Indians को लाने में सफल रही ।ये सब मोदी और सऊदी अरब किंग की दोस्ती की वजह से संभव हो पाया।

13. India की Air force की ताकत कमजोर हो गयी थी। इसके लिए आते ही फ़्रांस से 36 Rafale fighter Jets खरीदने के लिए deal की है।यह ड़ील सात साल से अटकी हुई थी..

14. after 42 years कोई पी एम Canada गया...भारत को Uranium देने के लिए राजी हो गया है । इस से बिजली की समस्या से निपटने में मदद मिलेगी ।

15. Canada अब भारतीयों को On-Arrival visa देगा।

16. अब तक हम अमेरिक और रूस से ही Nuclear Reactor खरीद सकते थे । मगर अब फ़्रांस भारतीय कम्पनी के साथ यही बनाएगी ।- MAKE IN INDIA


17. बराक ओबामा से दोस्ती की और अमेरिका अब भारत में 16 Nuclear power plant लगाने में मदद करेगा । जिस से भारत में बिजली की दिक्कत ख़तम हो जाएगी ।


अगर एक खुशहाल और खुबसूरत भारत देखना चाहते हो तो...

सिर्फ net पे जोक पढ़ पढ़ के अपनी समझ मत बनाओ।
केवल 12 माह में 17 बङे काम विदेशों के साथ मिलकर किया है, हर उस देश से रिश्ते सुधारे हैं, जिनसे हमारी दूरी का फायदा चीन ले रहा था...

और जो वास्तव में चीन से किसी ना किसी रूप में परेशान हैं...जापान गए..जो चाईना और अमेरिका के पेट में दर्द करता है...चाईना गए जो अमेरिका के...

और अमेरिका गए जो चाईना और पाक के पेट में दर्द करता है...
विश्व के हर बड़े नेता को भारत बुला चुके हैं...

और अब देखना भारत ग्लोबल पर छा रहा है और सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता जो नेहरू ने प्लेट पर रख कर चीन को दे दी थी...

भारत लेकर रहेगा..अपनी बुद्धि और तर्क शक्ति पर बात को समझिए...पहले साल विदेश नीति पर काम हुआ है और भारत विश्व पटल पर चमक रहा है...

इतिहास के अज्ञानी अगर देश के लिए कुछ करना है तो
मोदी जी के इस एक साल के काम को भारत की सारी जनता तक पहुचाए।

आपको यह सन्देश 3 लोगो को भेजना है।
कि मोदी (बीजेपी सरकार ) ने एक साल में कितना काम किया है।

इस प्रकार
1 = 3 लोग
यह 3 लोग 3 लोगो को मेसेज करेंगे
3×3 = 9
9×3 =27
27×3=81
81×3 =243
243×3 = 729
729×3 = 2187
2187×3 = 6561
6561×3 = 19683
19683×3 = 59049
59049×3 = 177147
177147×3 = 531441
531441×3 = 1594323
1594323×3 = 4782969
4782969×3 = 14348907
14348907×3 = 43046721
43046721×3 = 129140163
129140163×3 = 387420489
387420489×3=1,162,261,467

बस आपको तो एक कड़ी जोड़नी है देखते ही देखते पूरा देश जुड़ जायेगा और अगली वार मोदी जी इस बार से भी ज्यादा सीटो के साथ सरकार बनाएगे। अभी तो चार साल बाकी है।

Wednesday 27 May 2015

चोरी तो नहीं की, डाका तो नहीं डाला, मोदी जी ने सत्ता ही तो छीनी है -

मोदी जी ने दिन रात काम किया। देश को अपने एक एक पल का हिसाब दिया, फिर भी ढो़ल पीट-पीट कर देश भर में कांग्रेसी मातम मना रहे है। यह मोदी सरकार की विफलता के प्रति आक्रोश नहीं, सत्ता खोने की पहली बरसी पर व्यक्त की जा रही पीड़ा है, जिसे मोदी सरकार को कोसते हुए मना रहे हैं। मन के भीतर का दर्द छुपाये छुप नहीं रहा। जैसे-तैसे एक साल तो बीत गया, पर पहाड़ से चार साल कैसे बीतेंगे ? इन चार सालों में भी प्रदीप बैंजल जैसे धोखेबाज किताबी बम फोड़ते रहेंगे, तो हमारी सारी मेहनत पर पानी फिर जायेगा।

सभी कांग्रेसियों के मन में जलन है, खीझ है, पर देश की जनता को समझा रहे हैं, हमारी महारानी के हाथ से सत्ता छीन कर एक साधरण आदमी के हाथ में सत्ता की डोर थमा कर भारत की जनता ने अनर्थ कर दिया। जब इस आदमी को हम देश चलाने के लिए काबिल नहीं मानते, फिर जनता ने ऐसा घोर पाप क्यों किया ? हमने देश की जनता को गरीबी और महंगार्इ की सौगात दी, किन्तु मोदी ने गरीबी हटाने और महंगार्इ कम करने का वाद किया था, वादा क्यों नहीं निभाया ? हम भ्रष्ट थे, पूरे देश को भ्रष्टाचार में आंकठ डूबा दिया, मोदी ने आ कर देश से भ्रष्टाचार क्यों नहीं मिटाया ? हमने दस सालों में बैरोजगारी बढ़ार्इ, इन्हें एक साल में सारे बैरोजगारों को नौकरियां देनी थी, क्यों नहीं दी ? हमने खूब काला धन विदेश भेजा, इन्हें तो वापास लाना था, क्यों नहीं ला पाये ?

आज सत्ता के बिना हमारी महारानी छटपटा रही है। युवराज बावला हो कर देश भर में जो मन आया बकता फिर रहा है। आखिर जनता को हमारे अधिकार छीनने की क्या जरुरत थी ? हमारी महारानी का राज नहीं रहा। हम सभी चाटुकार संस्कृति के सेवक अनाथ हो गये। राज परिवार की चरण रज से ही तो हमारा राजनीतिक जीवन महकता है। खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं। अब जब परिवार विपत्ती में हैं तो हम कैसे चैन से बैठ सकते हैं। इसलिए हमने ठान लिया है- मोदी सरकार चाहे जितना अच्छा काम करें, हम उसे हमेशा जीरों देते रहेंगे। जनता में भ्रान्तियां फैलाते रहेंगे। हम सभी सेवक चार साल तक मोदी सरकार को बदनाम करने और जनता की नज़रो से गिराने का भरसक प्रयास करते रहेंगे। हमे आशा है एक दिन हमारी मेहनत रंग लाएगी। हमारा युवराज देश की बागड़ोर सम्भालेगा। हमारे बुरे दिन जायेंगे। अच्छे दिन आयेंगे। बैरोजगारी मिटेगी। महारानी खुश हो कर हमें रेवड़िया बांटेगी।

हमने चाहे जितने घपले-घोटाले किये हों, देश के खजाने पर डाका डाला हों, पर इस देश पर हुकूमत करने का अधिकार हमारे राजपरिवार का ही है। हम चाटुकार आज जो कुछ भी है, इस परिवार की कृपा से ही है। मोदी सरकार ने चाहे एक साल में चोरी नहीं की, डाका नहीं डाला, फिर भी उसने कोर्इ काम नहीं किया। हमने कम से कम यह काम तो किया था। अगर ऐसा काम करना नहीं आता था, तो हमसे ही सीख लेते। हमारे भी पाप छुप जाते और आप भी पापी नहीं कहलाते, क्योंकि एक चोर दूसरे चोर को चोर नहीं कहता।

संड़ाध मार रही व्यवस्था पर इत्र छिड़कने से इसकी दुर्गन्ध नहीं मिट जाती। सतसठ साल से जमा कीचड़ को तीन सौ पैंसठ दिन में साफ करना नामुमकिन है। इस पूरी गंदगी को साफ कर एक साफ सुथरा, भ्रष्टाचार मुक्त विकसित व समृद्ध भारत बनाने के लिए मोदी सरकार को जनता ने पांच वर्ष का जनादेश दिया है। सरकार इसमें कितनी सफल होती है और जनता की अपेक्षाओं पर कितनी खरी उतरती है, इसका फैंसला जनता करेगी। उन्हें फैंसला करने और सरकार को पास-फैल करने का कोर्इ अधिकार नहीं हैं, जो दस वर्ष तक सड़ांध मार रही व्यवस्था को साफ करने के बजाय इसमें और अधिक कीचड़ उड़ेलते रहे है। वैसे भी सजा सुनाने का अधिकार न्यायाधीश को होता है, किसी मुजरिम को नहीं। भारत की जनता न्यायाधीश है, वही चार साल बाद मोदी सरकार के कामकाज का लेखा जोखा कर फैंसला सुना देगी। जो मुजरिम थे और जिन्हें जनता ने मुजरिम ठहराया है, उन्हें सरकार के पक्ष में अनर्गल संवाद करने और तथ्यहीन आरोप लगाने का कोर्इ नैतिक अधिकार नहीं है।

चोर रात में नहीं, दिन में सूट-बूट पहन कर आते है। इस तरह का जुमला सुनाने वाले पहले इस बात का जवाब दें कि दस सालों में जो बारह लाख करोड़ रुपये के घपले-घोटाले किये हैं, वह धन कहां है ? अपनी निजी यात्राओं पर हर वर्ष करोड़ो रुपये फूंकते हैं, वह धन कहां से लाये ? यदि वह चोरी का धन है, तो चोर कौन हुआ ? क्या यह जुमला सही नहीं है कि चोरों को ही सारे चोर नज़र आते हैं। मोदी सरकार भी आप ही की तरह सरकारी खजाने पर ड़ाके डालती और देश की सम्पदा को लूटेरे को लूटने देती, क्या तब उस सरकार को आप दस में से दस नम्बर देते ? आप जीरो नम्बर इसलिए दे रहें है क्योंकि एक साल में मोदी सरकार ने खजाने से एक पैसे की हेराफेरी नहीं की। न खाया और खाने दिये के अपने वादे पर कायम रही। सच भी है, खाने वाले और खिलाने वालों को ऐसी सरकारें कहां पसंद आ सकती है ?

एक के बाद एक सरकारी अफसर किताबे लिख कर जो बाते उगल रहे हैं, उसका खंड़न करने क्यों नहीं स्वंय आते ? जनता के बीच स्वयं जा कर यह बात क्यों नहीं कहते कि हम चोर नहीं है, हमने चोरी नहीं की है ? क्यों अपने चाटुकारों को सफार्इ देने के लिए भेजते हैं ? देश की जनता आपकी बकवास सुन कर बहुत आक्रोशित है। वह जानना चाहती है कि यदि मोदी सरकार ने एक साल में कोर्इ काम नहीं किया, तो आपने दस साल में क्या काम किया, उसका पहले हिसाब दें ?

शायद कांग्रेसी नेताओं को इस बात की खुशफहमी है कि जनता कुछ नहीं जानती, उसके सामने झूठ को प्रभावी ढंग से समझाया जाय, तो वह उसे सच मान लेती है। भारत की राजनीति में इन दिनों प्रचलित केजरीवाल शैली का कांग्रेसी नेताओं पर खासा प्रभाव पड़ रहा है। केजरीवाल का राजनीतिक दर्शन कहता है कि जनता के बीच अपने प्रतिद्वंद्वी पर झूठे आरोप जोर-जोर से बोल कर लगाओ, जनता झूठ को सच मान लेगी। बात का बतंगड़ करों। अनावश्यक विवाद पैदा करों। जनता के बीच कर्इ तरह की भ्रांतियां फैलाओं, जिससे जनता आपके विरोधी से चिढ़ जायेगी और वह थक हार कर आपकी शरण में आ जायेगी।

केजरीवाल मोदी सरकार के विरुद्ध दिल्ली में नौटंकियां कर रहे है और कांग्रेसी नेता केजरीवाल बन पूरे देश में मोदी सरकार के विरुद्ध दुष्प्रचार कर रहे है। लगता है दोनो मिल कर राजनीतिक चालें चल रहे हैं। किस को कितनी सफलता मिलती है यह तो भविष्य ही बताएगा, किन्तु यह हकीकत है कि झूठ के पांव ज्यादा लम्बे नहीं होते। सच की जीत होती है। झूठ की हार होती है। झूठ की बुनियाद पर खड़ी की गर्इ राजनीति की दीवार एक दिन भरभरा कर गिर जायेगी।

अगर आप सहमत है तो इस सचाई "शेयर " कर के उजागर करे।

हमने मुल्क को तबाह करने की सुपारी ली है जी -

हम देश के संविधान को सत्ता पर चढ़ने की सीढ़ी मानते हैं जी। संविधान की शपथ लें, कुर्सी पर बैठ गये, फिर संविधान की धाराओं को पांवों के तले रौंद रहें है जी। हमे देश की प्रशासनिक व्यवस्था से कोर्इ सरोकार नहीं। हमने इसे बर्बाद करने का मानस बना लिया है। हमने अपने छियांसठ विधायकों को मंत्री या मंत्री जितनी सुविधाएं दिला दीं। उन्हें सचिवालय में कमरे और स्टाफ दिला दियें। आर्इएस अफसरों को हमने खाली बिठा रखा है। जो हमारे अपने थे, उन्हें काम दिया, ऑफिस दिये, बाकि बहुत सारे खाली बैठें हैं, क्योंकि न तो हमारे पास उनको देने के लिए काम है और न ही बिठाने के लिए जगह। दरअसल स्थापित नियम, कानून और लोकतांत्रिक परम्पराओं को हम नहीं मानते, क्योंकि हमे अराजक कहते हैं। हम अराजक हैं और अराजक रहेंगे। खबरों में बने रहने के लिए हम वे सारे अराजक काम करते रहेंगे, ताकि पूरे देश की जनता रोज टीवी पर हमारे दर्शन करती रहें। हम कोर्इ सरकार चलाने या काम करने थोड़े ही आये हैं, हम तो अपने व्यक्तित्व को चमकाने आये है। व्यवस्था के विरुद्ध जनता को विद्रोही बनाने आये हैं।

हम शहरी नक्सली है जी ! हम शब्दों की गोलियों और सफेद झूठ के धमाकों से अपने दुश्मनों को ललकारते हैं। जंगल में रहनेवालें नक्सलियों की तरह हमे धमाके करने और गोलियां बरसाने के बाद जंगलों मे छुपना नहीं पड़ता। हम सीना तान कर घूमते हैं। हमे इस देश के कानून की धाराएं पकड़ ही नहीं सकती, क्योंकि हम खून नहीं करते, लोगों का दिमाग खराब करते हैं, ताकि सभी हमारी तरह अराजक बन जायें। जंगली नक्सली राजनीतिक व्यवस्था को नहीं मानते। वे जंगल में रह कर इस व्यवस्था को नष्ट करना चाहते हैं। हम शहरी नक्सली व्यवस्था मे घुस कर और राजनेता बन कर व्यवस्था को तबाह करना चाहता है।

नक्सलियों की भी भारत के संविधान में आस्था नहीं हैं, हमारी भी नहीं है। वे व्यवस्था के विरुद्ध खुला विद्रोह कर रहे हैं। हमारा छुपा हुआ एजेंड़ा भी यही है। संविधान को हम भी नहीं मानते, किन्तु संविधान से लाभ उठा कर देश की राजनीतिक व्यवस्था को नष्ट कर हम अपने लिए नर्इ व्यवस्था बनाना चाहते हैं, ताकि हम दिल्ली प्रदेश के नहीं, पूरे भारत के तानाशाह बन जायें। हमे विरोध और विरोधी पसंद नहीं हैं। यदि हमारा मकसद पूरा हो गया तो पांच साल बाद फिर जनता के पास वोटों की भीख मांगने की जरुरत नहीं होगी। जैसे हमने अपनी पार्टी और विधानसभा में अपने सारे विरोधियों को ठिकाने लगा दिया, वैसे ही तानाशाह बन कर हम देश भर में अपने विरोध और विरोधियों को खत्म कर देंगे। आप समझ गये न, हमारे इरादे कितने खतरनाक हैं जी ! हम सिस्टम में घुस कर इसे पूरी तरह नष्ट करना चाहते हैं। जनता ने कांग्रेस को ठुकरा दिय। अब मुल्क चार साल तक हमारी नौटंकिया देखेगा। इन्हीं नौंटकियों की बदौलत हम चार साल बाद भाजपा को सत्ता से हटा देंगे। दिल्ली विधानसभा जैसा प्रचण्ड़ बहुमत हमने भारतीय संसद में पा लिया तो निश्चित रुप से इस देश का संविधान बदल कर भारत के तानाशाह बन जायेंगे। इसके बाद देश में न सवंिधान रहेगा, न हमारे विरोधी रहेंगे। बस हम ही हम रहेंगे।

पूरे देश के किसानों को अराजक बनाने के लिए हमने एक किसान को हमारी सभा के मंच के पास ही मरवा दिया और इस देश का कानून हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सका। मीडिया की दगाबाजी से हमारा सारा प्लान फ्लाप हो गया। यदि हमारा प्लान सफल हो जाता, तो पूरे देश के किसानों को अराजक बना कर मोदी सरकार के विरुद्ध खड़ा कर देते।

हमारा एक प्लान फेल हो गया इसका मतलब यह नहीं है कि हम भविष्य और नये प्लान ले कर नहीं आयेंगे। दरअसल भारत की राजनीतिक व्यवस्था को तबाह करने के लिए हमने सुपारी ली है। जिन्होंने सुपारी दी हैं, उन्होंने दिल्ली का चुनाव लड़ने के लिए धन भी दिया था, अपने आदमी भी प्रचार में भी लगायें थे। उनका मकसद था- मोदी के घंमड़ का चूर-चूर करना, जो हमने कर दिखाया। अब हमारी योजना हैं-भारत की राजनीति से मोदी के वर्चस्व को समाप्त करना, इसकेलिए हम कर्इ योजनाओं पर काम कर रहे हैं, जिनका मकसद है- भारत को आर्थिक व राजनीतिक दृष्टि से तबाह करना। पूरे देश की जनता को विद्रोही बना कर अपने वश में करना।

दिल्ली तो हमारी प्रयोगशाला हैं, जहां हम शासन नहीं कर रहे हैं, दिल्ली को अराजक क्षे़त्र बनाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं। जो वादे चुनाव जीतने के लिए किये थे, वे पूरे होंगे नहीं, क्योंकि इतना पैसा है नहीं। बिजली के दाम आधे करने का बाद विकास के लिए धन बचा ही नहीं है। पर काम किसे करना है और शासन किसे चलाना है। हमे तो अपने सारे विधायकों को संतुष्ट कर चुपचाप बिठाना चाहते हैं, ताकि वे हमारे खिलाप मोर्चा बन्दी नहीं करें। इसलिए हमने उन्हें मौखिख सलाह दे रखी है- भ्रष्टाचार कर जितना पैसा कमाना चाहते हों, कमाते रहो। मैं रिश्वत नहीं लेने और रिश्वत नहीं देने के पोस्टर लगा कर भ्रष्टाचार दूर करता रहुंगा। मैं जनता को झूठ-मूठ ही समझाता रहुंगा कि देखो मेरे आने के बाद दिल्ली में भ्रष्टाचार खत्म हो गया है। अफसरों के माथे पर भ्रष्टाचार के पाप का मटका फोड़ कर उन्हें बदनाम करता रहुंगा। मैं भी अफसर रहा हूं और जानता हूं कि बिना मंत्रियों के मिलीभगत के अफसर भ्रष्टाचार नहीं कर सकता, पर उन्हें बदनाम करने में अपना क्या जाता है।

हमारा मकसद है-दिल्ली की सत्ता हाथ में आने के बाद केन्द्र सरकार के विरुद्ध न खत्म होने वाले संघर्ष की शुरुआत करना, जो हमने कर दी है। दिल्ली के राज्यपाल को तो जंग के लिए हमने मोहरा बनाया है। दरसअल हम अपने झूठ, प्रपंच और नौटंकी कला से केन्द्र सरकार को परेशान करना चाहते हैं। थोड़े दिनों बाद उपमुख्यमंत्री को पूरा चार्ज दे कर हम देश भर में घूमेंगे और जनता को केन्द्र सरकार के विरुद्ध भड़कायेंगे। वैसे राहुल हमे गुरु मान कर हमारी ही नीतियों का अनुशरण कर रहे हैं। पर आप जानते हैं, राहुल राजनीति के कच्चे खिलाड़ी है। वे जानते नहीं कि वे जा रास्ता बना रहे हैं, उस पर एक दिन हम दौडेंगे और उन्हें मिलों पीछे छोड़ देंगे। चार साल बाद भाजपा को सत्ता से राहुल नहीं, हम हटायेंगे, क्योंकि हमारे पास दिमाग है, तिकड़म है और विदेश में बैठे अपने एक प्रिय साथी का साथ हैं । साथी हमारे लिए प्रचुर धन का जुगाड़ करेगा। देश में काम कर रहे विदेशी मालिकों के मीडिया भी हमारा साथ देंगे। क्योंकि हमारा भारत मूर्खों का देश हैं। आपके पास जनता को मूर्ख बनाने की कला है, तो आप हर बाजी जीतते जायेंगे। दिल्ली में हमने वह करिश्मा कर दिखाया। दिल्ली की जनता की मूर्खता का लाभ उठाया। अब पूरे देश की जनता की मूर्खता का लाभ उठा कर भारत की शासन व्यवस्था को अपनी मुट्ठी में करना है। हमारे विदेशी साथी की भारत को तबाह करने की दिल्ली इच्छा यही हैं, जिसे हमे पूरा करना है, क्योंकि वह भी यह चाहता है कि भारत की सत्ता ऐसे आदमी के पास हो, जो उसके इशारे पर काम करें। हम उनके अहसान को पूरा करने के लिए जी जान एक कर देंगे, क्योंकि उनसे सुपारी जो ली है, जी!

अगर आप सहमत है तो इस सचाई "शेयर " कर के उजागर करे।

दस सालों के कुशासन पर कोर्इ रंज नहीं, एक साल के सुशासन पर सवालों की बौछार क्यों ?


यूपीए एक का पूरा कार्यकाल सत्ता पाने की खुमारी में ही निकल गया। मनरेगा ने 2009 में फिर सत्ता दिला दीं। उपलब्धियों के बजाय नाकामयाबियां ज्यादा होने पर भी सत्ता मिल गर्इ । मजा आ गया। यह खुशफहमी हो गर्इ कि सत्ता हमसे कोर्इ छीन नहीं सकता, क्योंकि भारत पर शासन करने का हमारा खानदानी हक है। निश्चिंत हो कर यूपीए दो के कार्यकाल में जी भर के घपले-घोटाले किये।

देश के प्राकृतिक संसाधनों की बेबाक व बेशर्म लूट से देश की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गर्इ। राजकोषीय घाटा बढ़ता गया। औद्योगिक उत्पादन घटता गया। बैरोजगारी और महंगार्इ बढ़ती गर्इ। अभावों ने देश के करोड़ो लोगों का सुख चैन लिया, किन्तु इन सब बातों से बेखबखर अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री आंखें बंद कर बैठे रहें। सीएजी ने जब पूरे देश का ध्यान कर्इ लाख करोड़ रुपये कि हेरा फेरी की ओर दिलाया तब प्रधानमंत्री ने नपे तुले शब्दों में जवाब दिये- मैं कुछ नहीं जानता। मैने कुछ नहीं किया। और सरकार के प्रवक्ता संसद और बाहर कहते रहे- सीएजी झूठ बोलती है। एक पैसा का घोटाला नहीं हुआ।

कांग्रेसी नेताओं को इस बात पर किंचित भी अफसोस नहीं है कि उन्होंने देश की करोड़ो जनता का भरोसा क्यों तोड़ा ? इस बात पर भी आत्ममंथन नहीं करते कि जनता ने क्यों उनकी पार्टी को सत्ता से उठा कर जमीन पर पटक दिया। पार्टी की आज ऐसी हालत हो गयी है कि वह उठ कर चल भी नहीं पा रही है। केन्द्र की सत्ता गर्इ। अधिकांश राज्यों से सूपड़ा साफ हो गया। फिर भी पता नहीं क्यों कांग्रेसी नेताओं को इस बात का आत्माभिमान है कि उन्होंने चाहे जितने पाप किये हों, किन्तु भारत की जनता के पास पुन: उन्हें सत्ता सौंपने के अलावा कोर्इ विकल्प ही नहीं है ? कांग्रेसी नेता पार्टी की ऐसी दुर्गति होने के बावजूद भी इस सोच से अपने आपको मुक्त नहीं कर पाये हैं कि भारत पर शासन करने का हक एक परिवार का ही है। चाहे वह परिवार कैसा भी हों, हम उसे उनका हक दिला कर ही रहेंगे। क्या कांग्रेसियों की लोकतंत्र में आस्था ही नहीं है ? जब कि भारत की जनता ने सुशासन और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन के लिए उस परिवार को ठुकरा दिया है, फिर क्यों वे एक परिवार की परिक्रमा करने से ही अपने आपको धन्य समझ रहे हैं।

जो गले तक भ्रष्टाचार के कीचड़ में धंसे हुए हों, उन्हें साफ सुथरी जमीन पर चल रहे र्इमानदार लोगों से प्रश्न पूछने का अधिकार नहीं होता है। देश को जिन्होंने दस साल तक कुशासन दिया, उसकी कोर्इ सफार्इ नहीं दे पा रहे हैं, पर एक साल के सुशासन पर सवाल उठा रहे हैं ? सच सामने आ रहा है, फिर भी किंचित मात्र भी शर्म नहीं। जनता के मन में एक पार्टी के प्रति वितृष्णा भर गर्इ है, फिर भी अहंकार जस का तस है।

यदि आंख पर से गरुर का पर्दा हटा कर देखेंगे तो सब कुछ साफ-साफ दिखार्इ देगा। मोदी सरकार के एक साल के कार्यकाल का हिसाब पूछने वाले पहले यह बताएं कि उनके मंत्री दस वर्षों तक अपने-अपने कार्यालय में कितने घंटे बैठे ? यदि वे हिसाब बता पायेंगे तो उन्हें मालूम हो जायेगा कि मोदी सरकार के मंत्रियों ने एक वर्ष में जितने घंटे ऑफिस में बैठ कर काम किया है, वह उनके दस वर्ष के काम के घंटों से अधिक है। मंत्री मौज मस्ती में डूबे रहते। कार्यालय में कभी कभार आतें। उसी फार्इल को अपने घर मंगवा लेते, जिसे निपटाने के लिए हार्इ कमान का आदेश आता।

प्रधानमंत्री की विदेश यात्राओं पर सवाल उठाने वालें क्या जानते हैं कि प्रधानमंत्री ने एक साल में अपने कार्यालय में बैठ कर जितने घंटे काम किया है, वह भी एक रिकार्ड़ है। पूर्व प्रधानमंत्री से सौ गुणा ज्यादा है, क्योंकि वे कभी कभी कुछ समय के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय आते थे। आ कर करते भी क्या ? फार्इले पहले छाया प्रधानमंत्री के पास भेजी जाती, फिर उनके पास मौखिक आदेश आता, जिस पर उन्हें आंख बंद कर अपने हस्ताक्षर करने रहते। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर ढ़ेरों सवाल उछालने वालों के पास क्या इस बात का जवाब है कि उनके प्रधानमंत्री इतने बेबस क्यों थे ? आज भारत का प्रधानमंत्री पद फिर शक्तिशाली हो गया है, उस पर उन्हें जलन क्यों हो रही है ?

क्या कांग्रेसी नेताओं के पास इस बात का भी जवाब है कि पहले हर मंत्रालय में फार्इलों के ढेर क्यों लगते थे ? क्यों उन्हें निपटाया नहीं जाता था ? निर्णय लेने में देरी क्यों होती थी ? फार्इलों पर निर्णय लेने के निर्देश प्रधानमंत्री कार्यालय देता था या किसी और जगह से निर्देश आते थे ? मोदी सरकार को एक व्यक्ति की सरकार बताने वालों को पहले अपने गिरेबान में झांक कर देखना चाहिये, फिर सरकार की ओर सवाल उछालने चाहिये। कांग्रेसी नेताओं को इस बात की जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिये कि उनके मंत्री जितनी फार्इले विरासत में छोड़ कर गये थे, वे सभी क्लीयर हो गर्इ है और नर्इ आने वाली फार्इले ठहरती नहीं, दौड़ती है, क्योंकि मंत्री स्वतंत्र हो कर काम कर रहे हैं। इसे ही पारदर्शी सुशासन कहते हैं, जो आपकी सरकार देश को नहीं दे पार्इ।

प्रधानमंत्री मोदी के महंगे सूट पर कटाक्ष करते समय क्या कांग्रेसी नेताओं को वह बात याद नहीं आती जब उनका गृहमंत्री बम विस्फोट में मारे गये लोगों को देखने के लिए महंगा सूट पहन कर गया था ? वे महाशय एक दिन में तीन बार घटनास्थल पर गये थे और तीनों बार वे अपने वस्त्र बदल-बदल कर गये थे। मोदी की विदेश नीति पर सवाल उठाने वालों को क्या अपने विदेश मंत्री की वह बात भी याद नहीं, जब वे एक अन्तरराष्ट्रीय मंच पर किसी और विषय का भाषण पढ़ देश की फजिअत कर आये थे। प्रधानमंत्री के विदेश दौरों का उपहास उड़ाने वालों को इस बात की भी जानकार जुटानी चाहिये कि प्रधानमंत्री के एक-एक पल का हिसाब देश को मिल सकता है, क्योंकि उन्होंने एक वर्ष मंष एक भी छुट्टी नहीं ली और एक भी निजी यात्रा नहीं की। किन्तु यदि वे राहुल गांधी के पिछले दस सालों का रिकार्ड़ खंगालेंगे तो उनके पांवों के नीचे से जमीन खिसक जायेगी, क्योंकि उन जनाब ने अपना अधिकांश समय देश में नहीं विदेश में बिताया था और निजी यात्राएं की थी। दस वर्षों तक वे संसद से नदारद रहें। संसद में सबसे कम बोलने का रिकार्ड़ भी उनके नाम है। मां-बेटे ने वायुसेना के विमानों का उपयोग कर कर्इ निजी व गोपनीय विदेश यात्राएं की थी। क्या इन सवालों का जवाब भी कांग्रेसी नेताओं के पास है ?

दस वर्षों में देश भर में सैंकड़ों बम विस्फोट हुए, हजरो निर्दोष नागरिक मारे गये, किन्तु प्रशासन अपाहिज बना रहा। बाटला हाऊस और अक्षधाम प्रकरण को फर्जी मुठभेड़ बता कर आतंकियों के प्रति सहानुभूति दर्शायी। ताज होटल की आतंकी घटना को भगवा आतंकवाद से जोड़ने की निर्लज्जता दिखार्इ। आज आतंकी घटनाएं रुक गर्इ है। क्या इसे सरकार की प्रशासनिक सफलता नहीं माना जा सकता ?
प्रतिकूल मौसम से फसले खराब हो गर्इ, फिर भी महंगार्इ नियंत्रण में है। राजकोषीय घाटा कम हो रहा है। अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत आ रहे हैं। विदेशी निवेश बढ़ रहा है। सरकार के कामों में लाख अवरोध खड़े करने के बाद भी सरकार पूर्ण प्रतिबद्धता और र्इमानदारी से काम कर रही है, फिर भी सारे सवाल एक साल बाद ही क्यों पूछे जा रहे हैं ? जबकि सरकार को पांच वर्ष तक काम करने का जनादेश मिला है। कांग्रेसी नेता जिस तरह बावले हो रहे हैं, क्या उससे नहीं लगता कि वे सत्ता के बिना तड़फ रहे हैं ? उनकी सब्र का बांध टूट रहा है।

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Tuesday 26 May 2015

सही बात है मोदी ने कुछ काम नही किया है ।। देखो हर साल कांग्रेस कितना काम करती थी -



सही बात है मोदी ने कुछ काम नही किया है ।।
देखो हर साल कांग्रेस कितना काम करती थी
।।खोदकर लाया हूँ उनके काम ।।
2011 -2जी स्पेक्ट्रम घोटाला 1,76,000 करोड़
2011 कॉमन वेल्थ घोटाला 70,000 करोड़
2010 आदर्श घर घोटाला 900 करोड़
2010S बैंड स्पेक्ट्रम घोटाला 2,00,000 करोड़
2010खाद्यान घोटाला 35,000 करोड़
2009 चावल निर्यात घोटाला 2,500 करोड़
2009 उड़ीसा खदान घोटाला7,000 करोड़
2009 झारखण्ड खदान घोटाला 4,000करोड़
2009झारखण्ड मेडिकल उपकरण घोटाला
130करोड़
2008हसन् अली हवाला घोटाला 39,120 करोड़
2008 काला धन 2,10,000 करोड
2008 स्टेट बैंक ऑफ़ सौराष्ट्र 95 करोड़
2008 सैन्य राशन घोटाला5,000 करोड़
2008 सत्यम घोटाला 8,000 करोड
2006पंजाब सिटी सेंटर घोटाला 1,500 करोड़
2006ताज कॉरिडोर घोटाला 175 करोड़
2005 आई पि ओ कॉरिडोर घोटाला1,000
करोड़
2005 बिहार बाढ़ आपदा घोटाला 17 करोड़
2005 सौरपियन पनडुब्बी घोटाला 18,978
करोड़
2003 स्टाम्प घोटाला 20,000 करोड़
2002 संजय अग्रवाल गृह निवेश घोटाला 600
करोड़
2002कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज घोटाला 120
करोड़
2001केतन पारिख प्रतिभूति घोटाला 1,000
करोड़
2001UTI घोटाला 32 करोड़
2001 डालमिया शेयर घोटाला 595 करोड़
1998 टीक पौध घोटाला 8,000 करोड़
1998 उदय गोयल कृषि उपज घोटाला 210 करोड़
1997 बिहार भूमि घोटाला 400 करोड़
1997 सुखराम टेलिकॉम घोटाला 1,500 करोड़
1997SNC पॉवेर प्रोजेक्ट घोटाला 374 करोड़
1997 म्यूच्यूअल फण्ड घोटाला 1,200 करोड़
1996 उर्वरक आयत घोटाला 1,300 करोड़
1996यूरिया घोटाला 133 करोड
1996चारा घोटाला 950करोड़
1995मेघालय वन घोटाला300करोड़
1995 प्रेफ्रेंशल अलॉटमेंट घोटाला 5,000 करोड़
1995दीनार घोटाला (हवाला) 400करोड़
1995कॉबलर घोटाला 1,000 करोड़
1995 वीरेंदर गौतम (कस्टम टैक्स) घोटाला 43
करोड़
1994चीनी घोटाला 650 करोड़
1992हर्षद मेहता (शेयर घोटाला) 5,000 करोड़।।
बोफोर्स तोप घोटाला -राजीव गांधी 960
करोड़
सालो राम मंदिर और पेट्रोल पर रो रहे हो ।
इनमे से 5 के नाम भी पता था क्या ।
इतनी मेहनत कर रहा है पर तुम्हारी आदत है न हर चीज 
में डंडा करने की ।। अगर ये तंग आकर हट गया न तो
तुम्हे फिर यही कांग्रेस मिलेगी ।।
जितने भी उसके बाहर घूमने से परेशान है वो बाहर
हनीमून नही मना रहा ।। सुरक्षा मजबूत कर रहा
है देश की ।आज तुम सबको को किसान दिख रहे
हैं और जब यूरिया और खाद घोटाला हुये तो
कुछ नही दिखा ।।

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Sunday 24 May 2015

दिल्ली के.... जोकरीवाल सर्कस...के 100 दिन का हिसाब -



दिल्ली के.... जोकरीवाल सर्कस...के 100 दिन का हिसाब --
१) पहला हफ्ता :- शपथ ली, प्रेस कान्फ्रेंस करते रहे ..
२) दूसरा हफ्ता :- बेंगलूर के जिंदल हास्पिटल में सरकारी खर्चे पर खांसी का इलाज
३) तीसरा हफ्ता ;- दिल्ली आकर योगेन्द्र यादव और भूषण से झगडा शुरू ..नौटंकी चालू
4) चौथा हफ्ता :- दिल्ली म्युनसिपिल के मेयर और पार्षदो से झगडा ..करोडो रूपये लैप्स कर दिये लेकिन भूखे मर रहे सफाईकर्मियो का तीन माह का वेतन नहीं दिया...5) पांचवा हफ्ता ;- सफाईकर्मी हडताल पर ..दिल्ली की सडके और गलियां कचरे से भर गयी ...
6) छठवा हफ्ता :- भूषण और यादव से विवाद, बयानबाजी, टीवी नौटंकी चालू ...
7) सांतवा हफ्ता ..;- भूषण, यादव को लात मारकर बाहर करने का केजरी का आडियो टेप लीक हुआ..
8) आंठवा हफ्ता :- भूषण ,यादव को राष्ट्रीय सम्मेलन से बाहर किया और कुछ के साथ किराये बाउंसर ने मारपीट की...
9) नौ वा हफ्ता :- भूषण गैंग द्वारा अलग पार्टी बनाने की नौटंकी
10 ) दसवा हफ्ता :- किसान आंदोलन में किसान गजेन्द्र को आत्महत्या के लिए उकसाया गया...
11) ग्यारहवां हफ्ता ;- गजेन्द्र आत्महत्या पर विवादित बयान दिये ..जांच पर नौटंकी और आशुतोष कलुआ का मनहूसियत के साथ रोना ..
12) बारहवा हफ्ता :- LG से झगडा और मोदी सरकार पर आरोप लगाने की नौटंकी चालू है ....
दिल्ली वालो इन सौ दिनों में सिर्फ नौटंकी ,ड्रामा और सर्कस होता रहा ...नाकि कोई विकास का काम हुआ..... 


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Wednesday 20 May 2015

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी के विदेश यात्राओ का सच -

28 साल बाद कोई भारत का प्रधान मंत्री श्री लंका गया, नेपाल में कोई भारत का प्रधान मंत्री 17 साल बाद गया, ऑस्ट्रेलिया 28 साल बाद, Seychelles 34 साल बाद, Fiji 33 वर्ष, म्यांमार 25 वर्ष …… दिल्ली के लुटियन जोन वाले घोटाले, आरक्षण, लूट-खसोट, जीरो लॉस, दलाली, तुष्टिकरण में व्यस्त थे तब चीन अलग ही काम में व्यस्त था - वो था String of Pearls (Indian Ocean) Strategy. इसके तहत चीन ने बांग्ला देश के चित्तगोंग में एक बड़ा नवल यार्ड बनाने के बाद श्री लंका के हम्बनबोटा में 20 अरब डॉलर का कमर्शियल शिपिंग सेंटर बनाया।


उसके बाद पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को बनायi.... इस पोर्ट का असल सामरिक और व्यापारिक अधिपत्य चीन के पास है। ....... anti - piracy के बहाने से अपनी मज़बूत स्थिति बनाई। चीन के चक्रव्यूह को देखते हुवे।

अब इस नयी सरकार ने इस दिशा में कदम उठाया है … और "सागरमाला" नामक रणनीति पर काम शुरू कर दिया है... नेपाल में बिजली कारखाना, सड़क और बुनियादी सुविधाओं के लिए मदद एक सफल कोशिश की नेपाल चीन के तरफ फिर न जाए (नेपाली माओवादी पहले ये कर चुके है), उसके बाद म्यांमार, फिजी यात्रा भारत को चीन के करीब बेस बनाने का स्थान पाने का सफल कोशिश, वियतनाम को स्वदेशी पोत - जिससे अब दक्षिणी चीन सागर में न सिर्फ भारत की सामरिक शक्ति का एहसास हुवा हैं बल्कि ONGC जैसे भारतीय कंपनी को तेल शोधन के लिए सारे जरूरी सहयोग भी मिल रहा है।

अब Seychelles, मारीशियस और श्री लंका की यात्रा से भारत को बहुत बड़ा strategic फायदा मिल रहा है, भारत Seychelles में रडार लगाएगा, कण्ट्रोल मारीशियस से होगा, भारत का टोही एयर बेस भी बन जाएगा जिससे चीन की उसके String of Pearls (Indian Ocean) Strategy की सारी जानकारी भारत को उपलब्ध रहेगी ...... चीन की शतरंजी चलों के जवाब में मोदी जी ने शाह मात का खेल चालू कर दिया है।
आने वाले दिनों में PM मोदी की यात्रा मेरे अनुमान के अनुसार मोज़ाम्बीक, ज़िम्बाब्वे, दक्षिणी अफ्रीका, ओमान के अलावा इंडोनेशिया, फ़िलीपीन्स और विएतनाम होंगे.....
बेबकूफी की हद है .....

आज देश जिस हालात में है मोदी उस संकट को उबारने में दिन रात लगे हुए हैं लेकिन कुछ लोग व्यंग के नाम पर बेबकूफी दिखा रहे हैं ।

कुछ लाईक शेयर के लिए विदेशनीति का मजाक उड़ाया जा रहा है । क्या फर्क है अब मीडिया में और इन लोगो में? प्रधानमन्त्री अब चीन दौरे पर हैं ।

उस चीन के जो एशिया में भारत के सामने हमेशा मुसीबत बन कर खड़ा होता है । स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ नाम की चीन की एक ऐसी चाल जिसके जरिये भारत पर चीन कब्ज़ा करना चाहता है ।
यह एक ऐसी चाल है जिसके जरिये चीन भारत की सीमाओं पर बसे देशो से अच्छे सम्बन्ध बना कर उनके यहाँ बन्दरगाह ले रहा है । चीन कहता है इसका प्रयोग वो व्यापार के लिए करेगा पर इतिहास गवाह है चीन अपने व्यापार को मिलेट्री-सहायता देने में गुरेज नहीं करता है—जैसा कि हर देश को करना चाहिए ।
15वीं सदी के शुरुआत में जब चीन के मिंग-राजवंश ने अपना समुद्री-काफिला व्यापार करने के लिए दुनियाभर में भेजा था तो उसके साथ पूरे 72 युद्धपोत भेजे थे, ताकि उन्हे समुद्री-डकैतों और विरोधी देशों की नौसेनाओं से मुकाबला किया जा सके ।

'स्ट्रिंग ऑफ़ पलर्स' के तहत चीन ने पाकिस्तान में ग्वादर, श्रीलंका में हम्बनटोटा, बर्मा में कोको द्विप, दक्षिण चीन सागर में हेनान दीप आदि पर कब्ज़ा करता चला जा रहा है । चीन की इस चाल का खुलासा अमेरिका ने 2005 में ही कर दिया था क्यूकि दक्षिण चीन सागर से बन रहे है इस जाल का अंत अमेरिका को घेरने तक का है लेकिन भारत सरकार सोती रही ।
भारत ने इस पर ध्यान 2011 में दिया और तब तक हम घिर चुके थे । इस मामले में बड़ी बेबकूफी हमारी पूर्व सरकारों की रही है जिन्होंने कभी पड़ोसियों को अपना नही बनाया और आज आप मोदी के बारे में इसीलिए सुन रहे हैं कि भारत का कोई प्रधानमन्त्री इतने साल बाद नेपाल गए, इतने साल बाद जापान गए, इतने साल बाद मोरोशिस गए ।

मित्रो हमारे पड़ोसी देशो को पूर्व सरकारों ने कोई अहमियत नही दी जिसका फायदा चीन ने उठाया और हालात आपके सामने हैं । यह कहानी बहुत बड़ी और संकट लिए है जिसे बहुत आसान शब्दों में आपको बता रहा हूँ ।
अब आप खुद समझ जाइये कि मोदी क्यू फ्रांस से 136 फाइटर प्लेन खरीद रहे हैं । इजरायल से क्यू लाखो के हथियार खरीदें जा रहे हैं । क्यू सभी पडोसियों से रिश्ते अच्छे बनाये जा रहे हैं ।
पिछले एक साल का कार्यकाल पर आप गौर करें तो मोदी का ध्यान अभी विदेशनीति, देश की सुरक्षा पर ही है । ....वन्देमातरम ...जय माँ भारती ......


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